Sunday, May 14, 2023

मातृ दिवस पर पहाड़ी कविता

 अम्मा री घड़ी 


अम्मा मेरी थी  बेशक अणपढ़,

पर थी से बड्डी अक्लमंद।

घड़ीया ते टेम कदी देखणा नी आया 

पर टेमों री थी बहोत ई पाबन्द।


धयाडिया जो धूप होर छाँव,

 राती जो आसमानां रे तारे।

मुर्गे री बांग था भयागा रा लार्म,

सुणी के उठूं थे  से लोक सारे।


भयाणु  तारा जेबे निकल्या

समझो हुणे लागी सबेर।

पहलां उठी के  मेहसी दुहणी

कदी नी देखीं हुन्दी देर।


काम करना  नाले हाकां पाणी

उठी जाओ भाऊ करो तैयारी।

सकुला जाणे रा टेम हुइगा

फटाफट निकलो खाइके नवारी।


रोशनदानों ते औंदी धुप्प,

दिन चढ़ने रा  देउं थी सनेआ।

बेहड़े री कांधा पर लाइके नसाणी

स्कूलों जाणे रा टेम था बनेआ।


पैरां हेठै जेबे आओ पडछावां,

समझो दिनां रे बाजीगे बाराँ

पारलिया धारा धुप्प जेबे चलीगी,

घरां जो आणे लागी पंछियां री डारां।


एकी एकी घड़िया, एकी एकी पला रा

घड़िया ते बिना  सारा हसाब था।

आजकल बोलदे पढ़े लिखे छोरु

बई पहलां रा टेम बहौत खराब था।


बेशक घड़िया नी थी, पर टेम बहौत था

पैदल चलदेयाँ मुकु नी थी बाटां।

बेशक लोकां गे आज महंगी महंगी घड़ियां

फेर बी तीनां गे टेमो रा घाटा।।

- हरिराम धीमान





















Sunday, July 13, 2008


मेरा जन्म हिमाचल के सोलन जिले की नालागढ़ तहसील के दूर दराज गाँव मित्तियाँ में हुआ था. उस समय नालागढ़ तहसील पंजाब के अंबाला जिले का एक भाग था. यह नालागढ़ तहसील के काला पानी के नाम से प्रसिद्ध था. उस समय किसी कर्मचारी को सज़ा देने के लिए तीन "एम" प्रसिद्ध थे, मांगल, मित्तियाँ, और मलौन. आज हालात बदल गये हैं. मांगल में जे पी ग्रुप ने सीमेंट प्लांट लगाया है. मुझे स्कूल में कब दाखिल किया गया, याद नहीं. अध्यापक हमारे ही घर में परिवार के सदस्या की तरह ही रहते थे. पिताजी ने उनसे किराया कभी नहीं लिया और उन्होंने कभी फीस नहीं ली. मेरी जन्म तिथि 6 जुलाई 1959 है. हमारे यहाँ आम तौर पर बच्चों को 6 साल का होने पर ही स्कूल में दाखिल करते थे. वैसे तो दाखिले अप्रैल महीने में होते हैं किंतु में 6 साल का 6 जुलाई को होना था. 1 जुलाई से 31 अगस्त तक छुट्टियाँ होती थी. उस समय पिता जी ने अक्तूबर तक नवरात्रों का इंतज़ार किया. उस वक्त जन्म प्रमाणपत्र की ज़रूरत नहीं होती थी. दाखिला 10 अक्तूबर को करवाया, तो अध्यापक ने जन्म तिथि भी 10 अक्तूबर ही लिख दी और वही अब प्रामाणिक जन्मतिथि बन गयी है. इसलिए अब मुझे अपना जन्मदिन साल में दो बार मनाना पड़ता है, 6 जुलाई को घर में और 10 अक्तूबर को ऑफीस में.

Sunday, July 6, 2008

आज मेरे जीवन का ख़ास दिन है. आज मैं 50 वें साल में प्रवेश कर रहा हूँ. जीवन के इस मोड़ से जब पीछे पलट कर देखता हूँ तो इतना लंबा सफ़र उतार चढ़ाव से भरा नज़र आता है. स्मृतियाँ आँखों के सामने किसी फिल्मी रील की तरह घूम जातीं हैं. सच कहूँ तो जीवन ही किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं. हिमाचल के दूर दराज एक ऐसे पहाड़ी गाँव में पैदा हुआ था जहाँ 95 प्रतिशत लोगों ने बस देखी तक नहीं थी. गाँव से कोई सरकारी नौकरी में नहीं था. मैं चार भाईओं में सबसे छोटा हूँ. बड़े तीनों भाई भी चौथी क्लास तक पढ़े थे. माताजी और पिताजी अनपढ़ थे. उनकी इच्छा थी की मैं कम से कम मैट्रिक तो ज़रूर कर लूं. अभी सातवीं क्लास में था की पिता जी चल बसे. उनके सपने को पूरा करने के लिए अपने गाँव में पहला बी ए पास बना और लगभग 25 साल तक अपने गाँव से मैं अकेला ग्रॅजुयेट था. बैंक में क्लर्क की नौकरी शुरू करके आज मेनेजर की पोस्ट तक पहुँचा हूं. आज जब बच्चों से अपने अनुभव कहता हूं तो वे हैरान होते हैं. उन्हीं का सुझाव था कि अपने इन अनुभवों को आप लोगों से भी सांझा करूँ.
मुझे लगता है कि इस शुभ काम को शुरू करने के लिए आज से अच्छा और अवसर नहीं हो सकता. इस लिए आज से अपने इन अनुभवों को आप लोगों से साप्ताह में एक या दो बार अवश्य सांझा करूँगा. आप लोगों की प्रतिक्रियाओं का स्वागत है